शनिवार, 16 अगस्त 2025

देश भर में धूम धाम से मनाया जा रहा संस्कृति, आस्था और समाज को जोड़ने का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी - अमित तिवारी

कटनी/मध्यप्रदेश :- देशभर में आज भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम है। मंदिरों में झांकियां सजाई जा रही हैं, रासलीलाओं का मंचन हो रहा है, जगह-जगह "दही-हांडी" की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं और श्रद्धालु उपवास व भजन-कीर्तन के माध्यम से इस पावन अवसर का उत्सव मना रहे हैं। भारत की विविधता और संस्कृति का यह ऐसा पर्व है, जो केवल धार्मिक आस्था का ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और उत्साह का प्रतीक भी है।

प्रदेश सरकार ने भी इस वर्ष पूरे प्रदेश में कृष्ण जन्माष्टमी को भव्य रूप से मनाने का निर्णय लिया है। इससे एक ओर जहां परंपराओं को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर नवपीढ़ी को हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अवसर प्राप्त होगा। सरकारी स्तर पर ऐसे आयोजनों से यह संदेश भी जाता है कि धर्म और संस्कृति समाज को जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं।

कृष्ण जन्माष्टमी का संदेश केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और नीति से कार्य करना चाहिए। गीता का उपदेश आज भी हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहने और निस्वार्थ भाव से काम करने की प्रेरणा देता है। यही कारण है कि कृष्ण केवल धार्मिक व्यक्तित्व ही नहीं बल्कि दार्शनिक और आदर्श नायक के रूप में भी पूजे जाते हैं।

यह भी सच है कि पर्व केवल मंदिरों और आयोजनों तक सीमित नहीं होने चाहिए। यदि हम वास्तव में कृष्ण जन्माष्टमी मनाना चाहते हैं तो हमें उनके जीवन से मिली शिक्षाओं को व्यवहार में उतारना होगा। चाहे वह अन्याय के खिलाफ खड़े होने की बात हो, मित्रता और प्रेम को निभाने की सीख हो या समाज में समानता और न्याय स्थापित करने का संकल्प – हर स्तर पर हमें कृष्ण के विचारों को आत्मसात करना चाहिए।

आज जब समाज में विभाजन, असहिष्णुता और स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब कृष्ण जन्माष्टमी जैसे पर्व हमें याद दिलाते हैं कि जीवन का वास्तविक आनंद केवल भक्ति, सद्भाव और प्रेम में है। सरकार और समाज दोनों को इस अवसर का उपयोग केवल उत्सव तक सीमित न रखकर इसे सामाजिक सुधार और जनजागरूकता के मंच के रूप में भी करना चाहिए।

निस्संदेह, कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हमारे जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है। यह दिन हमें यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि हम श्रीकृष्ण की वाणी को केवल शास्त्रों तक सीमित न रखें, बल्कि उसे अपने आचरण और कर्मों में भी उतारें। यही इस पर्व की सच्ची महिमा होगी।

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