अंशु मिश्रा ने बाहर आते ही जिस तरह जिले के विधायक पर 2000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के दस्तावेज़ दिखाए, वह महज़ एक राजनीतिक बयान नहीं था बल्कि सरकार और तंत्र को कटघरे में खड़ा करने वाला गंभीर आरोप है। अगर ये दस्तावेज़ वाकई ठोस सबूतों पर आधारित हैं, तो सवाल यह है कि इनकी जांच क्यों न हो? लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता का दायित्व सिर्फ कार्यक्रम कराने या तामझाम दिखाने का नहीं, बल्कि जनता को पारदर्शिता और जवाबदेही देने का भी है।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। विपक्ष को चुप कराने के लिए गिरफ्तारी का सहारा लेना न तो लोकतंत्र के लिए स्वस्थ संकेत है और न ही जनभावनाओं के अनुकूल। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष दोनों जरूरी हैं, क्योंकि विपक्ष ही वह आईना है जिसमें सरकार अपनी असलियत देख सकती है।
जरूरत इस बात की है कि इन आरोपों को नज़रअंदाज़ करने के बजाय पारदर्शी जांच कराई जाए। यदि आरोप गलत साबित होते हैं तो विपक्ष पर कार्रवाई हो, और यदि सही साबित होते हैं तो दोषियों पर। लेकिन आवाज़ दबाने की कोशिशें लोकतंत्र को कमजोर करती हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं।
जनता का अधिकार है कि उसे सच पता चले – और सत्ता का कर्तव्य है कि वह सच सामने लाए।
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