यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि बस्ती जिले की कड़वी हकीकत है।
पीड़ित परिवार के मुताबिक, उनका मासूम बच्चा कई दिनों से आईसीयू में भर्ती था। आरोप है कि बच्चे की मौत छिपा ली गई और अस्पताल प्रबंधन ने पैसे ऐंठने की नीयत से मृत बच्चे को भी आईसीयू में रखा। परिवार ने अपने कलेजे के टुकड़े को बचाने की उम्मीद में गहने बेचे और खेत तक गिरवी रख दिए, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वे एक मृत बच्चे के 'इलाज' के नाम पर लूटे जा रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि बच्चे का इलाज आयुष्मान कार्ड के तहत शुरू हुआ था, बावजूद इसके अस्पताल ने परिवार से लगभग दो लाख रुपये नकद वसूल लिए। यह सीधा-सीधा आयुष्मान योजना का दुरुपयोग और धोखाधड़ी का मामला है।
क्या ये डॉक्टर हैं या वसूली करने वाले दलाल? क्या ये अस्पताल है या किसी क्रूर व्यापार का अड्डा?
इस घटना ने समूचे चिकित्सा जगत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक मासूम की लाश को 22 दिन तक मुनाफे की मशीन बनाए रखना, यह बताता है कि मानवीय संवेदनाएं किस हद तक गिर चुकी हैं।
अब सवाल सीधा सरकार और सिस्टम से है:
* क्या ऐसे अस्पतालों की गहन जांच होगी?
* क्या लापरवाह डॉक्टरों पर हत्या का मुकदमा चलेगा?
* क्या स्वास्थ्य मंत्रालय इस गंभीर मुद्दे पर भी सोता रहेगा?
बस्ती की इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है और हर इंसान के मन में यह सवाल पैदा कर दिया है कि "क्या अब इंसानियत वाकई मर चुकी है?" प्रशासन से इस मामले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की मांग की जा रही है ताकि भविष्य में ऐसी अमानवीय घटनाएं दोबारा न हों।
ऐसे नर पिशाच चिकित्सक और उसके कर्माचारियों को ऐसी कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जो कि एक उदाहरण बन सके, और आगे कोई भी व्यक्ति से ऐसा घटिया कुकृत्य करने से डरे.
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