कटनी। अवैध शराब पर नकेल कसने के नाम पर जारी होने वाली प्रेस विज्ञप्तियों और ज़मीनी हकीकत के बीच का फासला एक बार फिर उजागर हो गया है। “ऑपरेशन शिकंजा” के नाम पर पीठ थपथपाने वाली पुलिस के दावे तब खोखले साबित हो गए, जब ग्रामीणों ने खुद मोर्चा संभालते हुए शराब से भरी बोलेरो वाहन पकड़ ली। साफ़ है—या तो यह अभियान सिर्फ़ काग़ज़ों तक सीमित है, या फिर अधीनस्थ अधिकारी ऊपर तक झूठी कार्रवाई दिखाकर गुमराह कर रहे हैं।
मामला बरही थाना क्षेत्र का है, जहां आज सुबह ग्रामीणों ने बिना नंबर प्लेट और काली फ़िल्म लगी बोलेरो को रोका। वाहन में भारी मात्रा में देशी व विदेशी शराब भरी हुई पाई गई। सूचना के बाद पुलिस को बुलाया गया और वाहन को में खड़ा किए जाने की बात सामने आई है।
यह घटना कई तीखे सवाल छोड़ जाती है। जो पुलिस चालानी कार्रवाई के नाम पर गरीब, दिहाड़ी मजदूर और बाइक सवारों पर कहर बरपाती है, वही पुलिस ऐसे वाहनों को कैसे खुली छूट देती रही? बिना नंबर और काली फ़िल्म जैसे खुले उल्लंघन क्या पुलिस की नज़रों से ओझल थे—या जानबूझकर अनदेखी की जा रही थी? यदि “शिकंजा” सचमुच कस रहा होता, तो शराब माफिया इतने बेख़ौफ़ होकर सड़कों पर कैसे दौड़ रहे थे?
ग्रामीणों का कहना है कि अवैध शराब का नेटवर्क लंबे समय से सक्रिय है, लेकिन कार्रवाई तभी होती है जब गांव खुद जागकर माफिया पकड़ ले। सवाल यह भी है कि अब क्या होगा—क्या पूरे नेटवर्क, सप्लाई चेन और संरक्षण देने वालों पर सख़्त कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी काग़ज़ी खानापूर्ति और दिखावटी पंचनामों तक सिमट कर रह जाएगा?
अब पुलिस के सामने अग्निपरीक्षा है। जनता देख रही है—या तो माफिया पर निर्णायक वार होगा, या फिर “ऑपरेशन शिकंजा” को इतिहास में एक और खोखला नारा मान लिया जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें