बरही थाना क्षेत्र के कुंदरेही सहित कई इलाकों में महिलाओं के नेतृत्व में हुए उग्र विरोध ने प्रशासन की निष्क्रियता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। नारों की गूंज—“गांव में शराब नहीं बिकेगी”, “नशा नहीं, विकास चाहिए”—इस बात का सबूत है कि दावे और हकीकत के बीच खाई गहरी होती जा रही है। महिलाओं का आरोप है कि अवैध शराब ने घर-घर की शांति उजाड़ दी, घरेलू हिंसा बढ़ी, कमाई शराब में उड़ रही है और बच्चों का भविष्य अंधेरे में धकेला जा रहा है।
ग्रामीणों का सीधा आरोप है कि असली शराब माफिया खुलेआम कारोबार कर रहे हैं, जबकि कार्रवाई खानापूर्ति और चुनिंदा मामलों तक सिमट गई है। बार-बार शिकायतों के बावजूद ठोस कदम न उठना, माफिया के हौसले और बुलंद कर रहा है। यही वजह है कि जनता पूछ रही है—क्या “ऑपरेशन शिकंजा” अपराध खत्म करने की मुहिम है या जनता को गुमराह करने की तकनीक?
प्रदर्शनकारियों ने दो टूक चेतावनी दी है कि यदि अवैध शराब पर तत्काल रोक, दोषियों की गिरफ्तारी और नशामुक्ति की ठोस योजना लागू नहीं हुई, तो थाना-घेराव, सड़क जाम और अनिश्चितकालीन आंदोलन होगा। यह संघर्ष किसी राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि अपने गांव और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचाने की लड़ाई बताया जा रहा है।लगातार भड़कते आंदोलन की रणनीति पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। जनता का अल्टीमेटम साफ है—
दिखावटी शिकंजा नहीं, माफिया की कमर तोड़ने वाली ईमानदार कार्रवाई चाहिए।

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