जिले में बढ़ती पुलिस की ‘निरंकुशता’ पर फूटा जनाक्रोश — बाकल में युवक को सिगरेट से दागने की घटना बनी चिंगारी!
लचर सिस्टम, चुनिंदा कार्रवाई और जवाबदेही की कमी से ‘खाकी’ पर उठने लगे सवाल
कटनी। जिले में हाल के दिनों में बढ़ती निरंकुश घटनाओं और पुलिस की सुस्त कार्यप्रणाली ने जनता के सब्र का बांध तोड़ दिया है।
जहां एक ओर चाकूबाजी, अवैध शराब बिक्री और अपराधियों की बेलगाम हरकतें थम नहीं रहीं,
वहीं दूसरी ओर बाकल में युवक के साथ हुई अमानवीय मारपीट और सिगरेट से दागने की घटना ने जिले में पुलिस के खिलाफ जनाक्रोश की चिंगारी भड़का दी है।
बाकल में निर्दयता की हद पार — सिगरेट से दागा गया युवक, पुलिस पर निष्क्रियता के आरोप
19 अक्टूबर को बाकल क्षेत्र के कुनाल सिंह राजपूत नामक युवक का कथित रूप से
असीम खान और अमिल खान द्वारा अपहरण कर अज्ञात स्थान पर ले जाकर बेरहमी से पिटाई की गई।
पीड़ित के शरीर पर सिगरेट बुझाई गई और उसका मोबाइल लूट लिया गया।
इस घटना के विरोध में बुधवार को हिंदू संगठनों और करणी सेना के नेतृत्व में सैकड़ों लोग सड़क पर उतर आए,
थाना घेराव किया, चक्का जाम कर दिया और थाना प्रभारी को हटाने की मांग पर अड़े रहे।
स्थिति इतनी बिगड़ी कि पुलिस को अतिरिक्त बल तैनात करना पड़ा।
लोगों का कहना था कि पुलिस ने शिकायत के बाद भी त्वरित कार्रवाई नहीं की,
जिससे जनता का गुस्सा फूट पड़ा।
बढ़ता अपराध, घटती जवाबदेही — जनता में सवाल कि आखिर ‘खाकी’ कब जागेगी?
पिछले कुछ महीनों से कटनी जिले में अपराध लगातार बढ़ रहे हैं —
बीच बाजार चोरी, लूट, हत्या ,चाकूबाजी की वारदातें,
अवैध शराब की खुलेआम बिक्री,
और अब बाकल जैसी निर्दयता की घटनाएं।
पुलिस की कार्यवाही केवल प्रेस नोट और दिखावे की दबिश तक सिमट गई है।
जनता पूछ रही है —
“जब कप्तान की मौजूदगी में शराब बिकेगी और थाने में न्याय नहीं मिलेगा,तो आम आदमी किस पर भरोसा करे?”
पुलिस के खिलाफ गुस्से की असली वजहें —
1️⃣ नेतृत्व की कमी — थानों में नियंत्रण कमजोर, कार्रवाई से ज्यादा रिपोर्टिंग पर ध्यान।
2️⃣ राजनीतिक दबाव — कई मामलों में सत्ता संरक्षण के आरोप उभर रहे हैं।
3️⃣ जनता से संवाद टूटना — बीट सिस्टम और जनसुनवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गए हैं।
4️⃣ जवाबदेही का अभाव — गलती पर न जवाब, न जिम्मेदारी तय होती है।
5️⃣ सोशल मीडिया पारदर्शिता — जनता हर घटना को लाइव देखती है, जिससे खाकी की हर चूक उजागर हो जाती है।
जनता की आवाज — “यहां न्याय नहीं, पहचान चलती है”
प्रदर्शनकारियों और स्थानीय लोगों का आरोप है कि
“जिस पर दबाव है, उसी पर कार्रवाई होती है।”
बाकल जैसी घटनाओं में अपराधी खुले घूमते हैं जबकि
पीड़ित थाने के चक्कर काटने को मजबूर है।
इस रवैये ने जनता के भरोसे को गहरी चोट पहुंचाई है।
नतीजा — साख पर दाग, भरोसे पर सवाल
कटनी की पुलिस अब दो मोर्चों पर घिरी दिख रही है —
एक तरफ अपराधी बेलगाम हैं, दूसरी तरफ जनता नाराज़।
अब ज़रूरत है जवाबदेही, निष्पक्षता और पारदर्शिता की वापसी की।
वरना जिस खाकी वर्दी पर कभी जनता को गर्व था,
अब वही अविश्वास और आक्रोश का प्रतीक बनती जा रही है।
“जब न्याय की उम्मीद बुझने लगे, तो आक्रोश की चिंगारी खुद-ब-खुद भड़क उठती है…”

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