एनजीटी में फंसी “धनलक्ष्मी” — कटनी में रेत का साम्राज्य अब भी जारी!
अधिकारियों की मिलीभगत से नियमों को ठेंगा — सुमित सेठ का ‘रेत सिंडिकेट’ अब भी बेखौफ सक्रिय
कटनी। रेत का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। एनजीटी की सख्ती और खदान सरेंडर किए जाने के बावजूद धनलक्ष्मी मर्चेंडाइज प्रा. लि. (डीएमपीएल) का कारोबार जिले में खुलेआम जारी है।
कंपनी को अब भी ETP (इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसपोर्ट परमिट) जारी किए जा रहे हैं, ट्रक भर-भरकर रेत उठाई जा रही है, और जिला प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है।
दरअसल, यह पूरा खेल स्थानीय अधिकारियों के संरक्षण में फल-फूल रहा है। और इसकी डोरें हिला रहा है कटनी का कुख्यात रेत कारोबारी सुमित सेठ — जिसके पैसे, पहुंच और राजनीतिक रसूख के आगे पूरा सिस्टम नतमस्तक नज़र आ रहा है।
सवाल उठते हैं — जवाब किसी के पास नहीं
एक महीना हो गया खदान सरेंडर किए, तो फिर कंपनी के पास इतना भंडारण कैसे बचा, जो अब तक खत्म नहीं हुआ?
और बड़ा सवाल — जब सरेंडर के बाद कंपनी ने कलेक्टर कार्यालय में नया आवेदन तक नहीं दिया, तो ETP जारी करने की अनुमति किस आधार पर दी जा रही है?
क्या वाकई ये रेत का कारोबार नहीं, बल्कि “सरकारी संरक्षण वाला सिंडिकेट” बन चुका है?
NGT में ‘फंसी’ कंपनी — जांच के डर से भागी
पर्यावरण कार्यकर्ता खुशी बग्गा की याचिका (मूल आवेदन क्र. 126/2025 सीजेड) पर एनजीटी ने गंभीर पर्यावरणीय उल्लंघनों की जांच के आदेश दिए हैं।
बग्गा ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने उमरार, महानदी, हलफल और बेलकुंड नदियों में बिना पर्यावरण स्वीकृति, बिना वैध पट्टे के खनन किया।
भारी मशीनों से रेत निकाली गई, जिससे नदियों का प्रवाह बदला, तट कटे, भूजल स्तर गिरा, और खेती से लेकर मछलियों तक सब पर असर पड़ा।
एनजीटी में मामला पहुंचते ही कंपनी ने सरेंडर आवेदन फेंक दिया — मानो “खोद लिया सब कुछ, अब निकलते हैं!”
लेकिन विभाग के रिकॉर्ड में सरेंडर अब तक स्वीकार ही नहीं हुआ।
तो फिर टेंडर कैसे जारी हुआ?
खनन विभाग खुद कह रहा है कि कंपनी पर भारी बकाया है, इसलिए सरेंडर मंजूर नहीं हुआ।
तो सवाल उठता है — अगर पुराना मामला लंबित है, तो नई कंपनी के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कैसे कर दी गई?
क्या पुराने गुनाहों को धोने की तैयारी चल रही है?
NGT की कड़ी नजर — छह सप्ताह में रिपोर्ट
एनजीटी ने इस मामले पर संयुक्त जांच समिति गठित कर दी है, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण बोर्ड और पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल हैं।
समिति को छह सप्ताह में रिपोर्ट सौंपनी है।
अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को निर्धारित की गई है।
जनमानस का सवाल —
“क्या कटनी में कानून से ऊपर है रेत माफिया?”
“क्या प्रशासन खुद रेत कारोबार का भागीदार बन चुका है?”
“एनजीटी की कार्रवाई से पहले ही क्यों नहीं रोका गया अवैध खनन?”
सवाल बहुत हैं — जवाब किसी के पास नहीं।
धनलक्ष्मी का रेत साम्राज्य फिलहाल प्रशासन की नाक के नीचे, खुलेआम, बगैर डर चलता दिखाई दे रहा है।

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