कटनी। प्रदेश में अवैध शराब माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए पुलिस मुख्यालय ने बड़े-बड़े अभियान चलाए, प्रेस विज्ञप्तियां जारी कीं, नशा मुक्ति अभियान का ढिंढोरा पीटा और वाहवाही लूटी। लेकिन हकीकत सामने आई स्लीमनाबाद की घटना में, जहाँ अवैध शराब का विरोध कर रहे ग्रामीणों को शराब ठेकेदार मंचू असाटी के कर्मचारियों ने शराब से भरी बोलेरो गाड़ी चढ़ाकर कुचल दिया। कई ग्रामीण गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचे और क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया।
पुलिस ने घटना के बाद बोलेरो गाड़ी ज़ब्त कर मंचू असाटी व दो अन्य पर हत्या के प्रयास और आबकारी एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की गंभीर घटना के बाद भी किसी अधिकारी या जिम्मेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
क्या यह माफियाओं के बढ़ते हौसले और तंत्र की मूक सहमति का जीता-जागता सबूत नहीं है? ग्रामीण वर्षों से अवैध शराब का विरोध कर रहे थे, पर प्रशासन ने उनकी आवाज़ अनसुनी कर दी। जब उनकी जान पर बन आई तब जाकर खानापूर्ति की कार्रवाई की गई।ऑपरेशन शिकंजा और नशामुक्ति अभियान की पोल अब खुलकर सामने है। धरातल पर हालात जस के तस हैं और माफिया खुलेआम सिस्टम को चुनौती दे रहे हैं। सवाल यह है कि क्या प्रशासन तब ही चेतेगा जब किसी निर्दोष ग्रामीण की जान जाएगी? या फिर यह अभियान केवल कागज़ों और प्रेस नोटों तक ही सीमित रहकर ग्रामीणों की पीड़ा का मज़ाक उड़ाता रहेगा?
जिस शराब ठेकेदार की शराब थी उसका ठेका का लाइसेंस निरस्त होने चाहिए व ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करना चाहिए।पूरे जिले में फिरसे अवैध शराब बिक रही है ।किसी पर कोई शिकंजा नही है।
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